1952 ई. धरि पत्नी संगमे घुमैत रहलथिन्ह, फेर तरौनीमे रहए लगलीह। यात्रीजी बीच-बीचमे आबथि। अपराजितासँ यात्रीजीकेँ छह टा सन्तान भेलन्हि, आऽ सभक सभ भार ओऽ अपना कान्ह पर लेने रहलीह।
यात्रीजी दमासँ परेशान रहैत छलथि। जे.पी.क सम्पूर्ण क्रान्तिक विरुद्ध सेहो जेलसँ बाहर अएलाक बाद लिखलन्हि यात्रीजी। नागार्जुन यायावरी प्रकृतिके व्यक्ति छलाह। ढक्कन, मिसिर, बाबा, वैदेह, यात्रीके उपनामसं जानै वाला रचनाकार नागार्जुन के यदि अनन्त पथक पथिक कहल जाय त अत्युक्ति नहिं होयत।
नागार्जुन मूलतः मैथिल भाषी छलाह। यात्री नामसँ मैथिलीमे कविता लिखैत छलाह। मैथिलीमे अपन कविता संग्रह लेल 1968 मे हुनका 'साहित्य अकादमी पुरस्कार' सँ सम्मानित कएल गेल। नागार्जुनक उपन्यास में मिथिलाक शस्य-श्यामल भूमि, जन-जीवन के आधार बनायल गेल आ एकरा माध्यम सँ नवीन समाजवादी चेतनाक सशक्त अभिव्यक्ति प्रदाल केलनि।
यात्रीजी मैथिलीमे बैद्यनाथ मिश्र "यात्री" केर नामसँ रचना लिखलन्हि। “पृथ्वी ते पात्रं” १९५४ ई. मे “वैदेही” मे प्रकाशित भेल छल, हमरा सभक मैट्रिकक सिलेबसमे छल। मैथिली भाषी साहित्य बाबा नागार्जुन के ‘वैदेह’ क नामसं सेहो याद करैत रहल अछि। देहसं मुक्त सबहक मनके पीड़ा समझै वाला, अनन्त पथक पथिक वास्तवमे ‘वैदेह’ ही भ सकैत अछि- मिथिलाक माइटसं उपजल माइटक खुश्बू के जन-जन तक पहुँचाबै वाला कवि। नागार्जुनक कविता संघर्षशील मनुष्यक सुख-दुख के दर्शाबैत अछि-
सामन्त आ जमींदारक विरुद्ध आ मजदूर वर्गक समर्थनमे रचल हिना रचना अपन भीतर एकटा संसार क रचैत अछि। एकटा एहन संसार जतय आम आदमी के पक्षधरता छैय।
नागार्जुनक पहिल मैथिली उपन्यास ‘पारो’ (1946) बेमेल विवाहक शिकार पार्वती (पारो) के कथाक माध्यम सं मिथिलाक रूढ़िग्रस्त सामाजिक परंपरा पर चोट करैत अछि आ ओकर दुष्परिणामक उजागर करैत छयi
घुमक्कड़ प्रवृतिक नागार्जुन स्वभावसँ विद्रोही छलाह। जीवनक सादगी, सरलता, स्पष्टवादिता आ खुललपन नागार्जुनक व्यक्तित्व के आंतरिक पक्षक मूलभूत विशेषता छल। अभाव आ गरीबी के चक्कर मे पीसी हुनकर व्यक्तित्व स्वाभिमानी बनल। स्वभाव सँ पढयमे रुचि रहबाक कारणे ई संस्कृत, पालि, मगधी, तिब्बती, मराठी, गुजराती, बंगाली, पंजाबी, सिंधी, अंग्रेजी आदि भाषाक ज्ञाता बनलाह।
विज्ञापनक एहि युगमे नागार्जुन यात्री प्रचारसँ दूर रहलाह आ पठन चिंतन आ मनन मे व्यस्त रहि साहित्य निमित जुड़ल रहलाह।
राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर नागार्जुनके काव्य-कला आ स्पष्टवादिताक प्रशंसक छलाह। पंडित बनारसीदास चतुर्वेदीके दिनकर जी एकटा पत्र लिखने रहैथ कि- 'नागार्जुनक गरीबी हमरा आब देखल नहि जायत अछि प्रण लेलउँ की हुनका लेल किछुने किछु व्यवस्था जरुर करब।............ '
साहित्यक एहि अथक साधक, अपन लेखनीसं सतत साहित्य रचनामे लीन, सामाजिक सरोकारके शिद्द्तसं जन-जन क अवगत करा ओकरा निरन्तर सजग करैय वाला साहित्य सिपाही बाबा नागार्जुन जी के 5 नवम्बर 1998 क दरभंगा ज़िलामे ख़्वाजा सराय मे देहावसान भ गेलैन आ हिन्दी साहित्य रचनाशीलतामे एकटा प्रयोगधर्मा-युग कवि विश्वमे अपन एहन अनोखा-अलग-अमिट छाप अंकित कय दैहिक तौर पर ओचिर शान्त भ गेलैथ मुदा हुनकर व्यापक रचना संसार साहित्य प्रेमी-साधक कय सदिखन झकझोड़ैत रहत। एहि तरहें अगर समय बदलि गेल त नागार्जुनक कविता/रचना हर वर्गक लोक सबके प्रभावित करैत रहत आ प्रासंगिक बनल रहत. ई चिंता आ अवधारणा व्यर्थ अछि की समय-काल बदललाक संगहि बाबाक कविता अप्रासंगिक भ जायत।
(स्त्रोत:विभिन्न आलेख)
प्रकाशित कृति
हिन्दी साहित्य: युगधारा, प्यासी पथराई आँखे, सतरंगे पंखों वाली, तालाब की मछलियाँ, भूल जाओ पुराने सपने, हज़ार हज़ार बाहों वाली, पुरानी जूतियों का कोरस, खिचड़ी विप्लव देखा हमने, तुमने कहा था, आख़िर ऐसा क्या कह दिया मैंने, मैं मिलट्री का बूढ़ा घोड़ा, रत्नगर्भा, ऐसे भी हम क्या:ऐसे भी तुम क्या, पका है कटहल, इस गुब्बारे की छाया में, भस्मासुर, अपने खेत में, भूमिजा। बलचनमा, रतिनाथ की चाची, कुम्भीपाक, उग्र तारा, जमनिया का बाबा, वरुण के बेटे, नई पौध, पारो, बाबा बटेश्वर नाथ, दुःख मोचन, आसमान में चाँद तारे,
नागार्जुन रचनावली : सात खण्डों में संकलित
संस्कृत कविताएँ:- लेनिन स्तोत्रम्, देश देशकम्, शीते वितस्ता, चिनार-स्मृतिः, डल झील, मिजोरम, भारत भवनम्
बांग्ला- भावना प्रवण यायावर, अघोषित भारे, भाबेर जोनाकि, आमार कृतार्थ होय छी, आमि मिलिटारिर बूड़ोघोड़ा, निर्लज्य नाटक, की दरकारनाम-टाम बलार
मैथिली:- पत्रहीन नग्न गाछ,(काव्य संग्रह), हीरक जयन्ति,(उपन्यास)
बाल साहित्य:-कथा मंजरी: भाग एक, कथा मंजरी भाग:दो, मर्यादा पुरुषोत्तम, विद्यापति की कहानियाँ,
व्यंग्य:- अभिनन्दन
निबंध संग्रह:- अन्तहीनम क्रिया हीनम।
अनुवाद : गीतगोविन्द, मेघदूत।
संस्मरण- एक व्यक्ति एक युग (निराला)
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