मिथिलाक्षर মিথিলাক্ষর -मिटबाक कगार पर हमर सांस्कृतिक धरोहर

किसी क्षेत्र का परिचय उस क्षेत्र के पहनावाउनके खानपानपरम्परा के साथ अगर उस क्षेत्र के परिचय को कोई​ स्थापित करता है-वह है वहाँ की भाषा एवं लिपि। भाषा सहजता से बोध कराता है कि अमुक व्यक्ति किस जगह का है। 1961 के जनगणना के अनुसार 1652 भाषा मातृभाषा में दर्ज किया गया जो 1971 के जनगणना में मात्र 109 ही रह गया। यह आँकड़ा काफी शर्मनाक है कि हम अपनी मातृभाषा एवं लिपि को भूल रहे हैं।   
Mithilakshar
मिथिलाक्षर सिखू
ऐसे भाषाओं की संख्या काफी कम है जिसकी अपनी स्वतंत्र लिपि हो। इस मामले में मैथिली सौभाग्यशाली है जिसकी अपनी स्वतंत्र लिपि है। इसे कभी वैदेही लिपि कहा गया तो कभी तिरहुता परन्तु वर्तमान में इसे मिथिलाक्षर के नाम से जाना जाता है। 

परन्तु हमारी इस सांस्कृतिक धरोहर मिथिलाक्षर को जानने वाले कितने लोग हैं? ब्राह्मी लिपि से निकले मिथिलाक्षर व बंगला में काफी सामानता के कारण लोगों को मिथिलाक्षर एवं बंगला लिपि में भ्रम होता है परन्तु मैथिल अगर भ्रम करने लगे तो आश्चर्य​ होता है। 

मिथिलाक्षर का प्रचलन घटने पर विभिन्न मंचों पर विद्वानों द्वारा चिन्ता की जाती रही है। अतीत में इसके विकास के लिए कुछ प्रयास भी किये गए। इसी प्रयास के तहत मैथिली के प्रथम इतिहासकार डा0 जयकान्त मिश्र ने मिथिलाक्षर सिखाने हेतु पुस्तिका प्रकाशित किये थे। अखिल भारतीय मैथिली साहित्य परिषद दरभंगा द्वारा भी मिथिलाक्षर अभ्यास पुस्तिका प्रकाशित किया गया। 

प्रति वर्ष जानकी नवमी पर कई संस्थाऐं/संगठन मैथिली के विकास के लिए संकल्प लेते तो हैं परन्तु उनके संकल्प सभा में मिथिलाक्षर बिना चर्चा के रह जाते हैं। इस लिपि के विकास के लिए ना ही अब तक कोई ठोस योजना बनी और न ही निष्पक्ष ढंग से कोई गंभीर जमीनी प्रयास ही किया गया। स्थिति यह है कि अब पुरानी रचनायें ही मिथिलाक्षर में रह गये हैं जो विभिन्न संग्राहलयों एवं पुस्तकालयों के आलमीरा की शोभा बढ़ा रहे हैं।

सन् 1920 के करीब महाराजा रामेश्वर सिंह ने दरभंगा महाराज के सभी कार्यो की दस्तावेज को मिथिलाक्षर के बजाय लोगों के सहूलियत के लिये देवनागरी लिपि में लिखवाना शुरु कर दिया। यहीं से इस लिपि का ह्रास का एक प्रमुख कारण माना जाता है। जानकारों का कहना है कि कठिन लिपी होने के कारण अब लोग इससे विमुख हो गए और देवनागरी को ही आधार बना लिया। 

उल्लेखनीय है कि पड़ोसी देश नेपाल के रामवरण यादव ने राष्ट्रपति पद हेतु मैथिली में शपथ ग्रहण किया और उस देश में अभी भी मैथिली को द्वितीय राजभाषा का दर्जा प्राप्त है। तो दूसरी ओर मिथिलांचल​ के प्रसिद्ध जन नेता भोगेन्द झा द्वारा सर्वप्रथम भारतीय संसद में मैथिली में शपथ ग्रहण कर मिथिला-मैथिली को गौरांवित किया।

लेकिन इसे विडंबना ही कही जाएगी कि जिस भाषा को भारतीय संविधान के आठवीं अनुसूची में शामिल कर लिया गया है उस भाषा की लिपि ही लिखावट से गायब हो रही है।
साहित्य अकादमी द्वारा मैथिली को साहित्यिक भाषा का दर्जा 1965 से हासिल है। 22 दिसंबर 2003 को भारत सरकार द्वारा मैथिली को भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में भी शामिल किया गया है और नेपाल सरकार द्वारा मैथिली को नेपाल में दूसरे स्थान में रखा गया है।
जारी .................

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