सीता - स्तुति

Image of Maa Janki
Mata Janki
निज इच्छा मखभूमि ते प्रगटभईं सिय आय।
चरित किये पावन परम बरधनमोद निकाय।
भई प्रगट कुमारी भूमि-विदारी जन हितकारी भयहारी।
अतुलित छबि भारी मुनि-मनहारी जनकदुलारी सुकुमारी।।

सुन्दर सिंहासन तेहिं पर आसन कोटि हुताशन द्युतिकारी।
सिर छत्र बिराजै सखि संग भ्राजै निज-निज कारज करधारी।।

सुर सिद्ध सुजाना हनै निशाना चढ़े बिमाना समुदाई।
बरषहिं बहुफूला मंगल मूला अनुकूला सिय गुन गाई।।

देखहिं सबठाढ़े लोचन गाढ़ें सुख बाढ़े उर अधिकाई।
अस्तुति मुनि करहीं आनन्द भरहीं पायन्ह परहीं हरषाई ।।

ऋषि नारदआये नाम सुनाये सुनि सुख पाये नृप ज्ञानी।
सीता असनामा पूरन कामा सब सुखधामा गुन खानी।।

सिय सनमुनिराई विनय सुनाई सतय सुहाई मृदुबानी।
लालनि तनलीजै चरित सुकीजै यह सुख दीजै नृपरानी।।

सुनि मुनिबर बानी सिय मुसकानी लीला ठानी सुखदाई।
सोवत जनुजागीं रोवन लागीं नृप बड़भागी उर लाई।।

दम्पति अनुरागेउ प्रेम सुपागेउ यह सुख लायउँ मनलाई।
अस्तुति सिय केरी प्रेमलतेरी बरनि सुचेरी सिर नाई।।

साभार-जानकी -मंगल / तुलसीदास / पृष्ठ 26

No comments:

Post a Comment

कलर्स आफ मिथिला- स्वागतम आलेख

Hamar Pranam अपनेक स्वागत अछि, मिथिलाक भव्य सांस्कृतिक-सामाजिक परम्परा, लोककला, धरोहर, विभूति क' जानकारी, संगहिं मिथिला-म...