मिथिला चित्रकला (पेटिंग): भूत, वर्त्तमान आ भविष्य

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गामक घर आँगनमे  मिथिला चित्रकला

आलेख- डॉ.  कैलाश कुमार मिश्र
 

परिचय -
५००० वर्ष पुरान भारतीय संस्कृति अपन आगामी पीढ़ी के परंपरा, आधुनिकता आ मूल्य प्रणालीक संयोजन सँ युक्‍त दिव्य मस्तिष्क देलक, जे समयक गति , बेर बेर भेल विदेशी हमला आ जनसंख्या मे पैघ वृद्धिक बावजूदो नीक सँ राखल गेल अछि। ई हुनका लोकनि कें विशिष्ट व्यक्‍तित्व देलक। २० वीं सदी अनेको क्षेत्र मे महत्वपूर्ण रहल आ एहि संबंध मे कलाक उल्लेख सेहो कएल जा सकैछ। २०वीं सदी मे बनल गीत, नाचक रूप, साहित्यिक काज आ कलाक काज मे नव अभिव्यक्ति आयल आ ई बात साबित भऽ गेल जे ई सदी नहि केवल मानवक इतिहास मे महान रहल वरन नव आविष्कार आ तेज नवीकरणक अवधि सेहो रहल। जहन कि कलाक सभ रूप पर्याप्त उपलब्धि प्रदर्शित कयलक, सिनेमा, पॉप म्यूजिक आर टेलीविजन वृतचित्र एहेन नव कला रूप सेहो आविष्कृत आ लोक- प्रिय भेल। मिथिला चित्रकला (पेंटिंग) जे मधुबनी चित्रकला (पेंटिंग) क रूप मे सेहो जानल जाईत अछि। मूल रूप सँ एहि क्षेत्रक सभ जाति आ समुदायक महिला द्वारा बनाओय जाइत अछि। एहि देशक महिला अति प्राचीन समय सँ विभिन्न रूपक रचनात्मकता मे स्वयं के संलग्न रखलनि। हुनक रचनात्मकताक सभ सँ नीक चीज प्रकृति, संस्कृति आ मानव मनोवृतिक बीच सम्बंध आछि। ओ ओही सामग्रीक उपयोग केलनि जे हुनका लग पास मे पर्याप्त मात्रा मे उपलब्ध छल। लोक चित्रकला आ कलाक आन रूपक माध्यम सँ ओ अपन इच्छा, सपना, आकांक्षा के व्यक्‍त कलनि आ अपन मनोरंजन सेहो केलनि। इ समानान्तर साक्षरता थिक, जेकरा द्वारा ओ लोकनि अपन सौंदर्यविषयक अभिव्यक्ति के व्यक्त केलनि । हुनक रचनात्मक कला स्वयं मे लिखनाईक शैली मानल जा सकैत अछि, जेकरा द्वारा हुनक भावना, आकांक्षा, वैचारिक स्वतंत्रता आदिक अभिव्यक्ति होइत अछि । हुनक पृष्ठभूमि, प्रेरणा, आशा, सौंदर्य विषयक सजगता, संस्कृति ज्ञान आदि हुनक सभ संभव कला मे व्यक्‍त भेल । हुनक कलाक विषय मे लिखबा आ गप्प करबा सँ पहिने हुनक आंतरिक संस्कृतिक स्तर आ सिखबाक तरीकाक विषय मे जानब आवश्‍यक अछि। ई आलेख महिला के केन्द्र बिन्दु मे राखि कें लिखल गेल अछि । 

एहि देशक कोनो क्षेत्र महिला रचनात्मकता सँ फ़राक नहि अछि । हम पंजाब मे फ़ुलकारी, गुजरात मे वारली, लखनऊ मे चिकन कशीदाकारी, उत्तर मे बुनाई, बंगाल मे कंथा, राजस्थान मे लघु चित्रकला, बिहारक मिथिला क्षेत्र मे सुजनी आ केथरीक रूप मे मिथिला चित्रकला (पेंटिंग) क उदाहरण देखैत छी । 

मिथिला पेंटिंग एहि क्षेत्रक महिला लोकनिक जीवंत रचनात्मक काज अछि। ई मुख्यत: मिथिलाक ग्रामीण महिला द्वारा कागज, कपड़ा, बन- बनायल पोशाक आदि पर चित्रित कएल गेल प्रसिद्ध लोकचित्र अछि। मूलत: ई मुसलमान सहित सभ जाति आ समुदायक महिला द्वारा प्राकृतिक रंग सँ देबार आ सतह पर बनाओल गेल लोकचित्र थिक। बाद मे किछ लोक एहि मे रूचि लेलनि आ महिला लोकनि के अपना कला कें देबार आ सतहक अलावा कैनवास पर उतारबाक प्रेरणा देलनि आ एहि रूप मे एहि कला कें कला जगत मे आ बाजार मे पहचान भेटलैक। एहि लोक कलाक अपन इतिहास, सांस्कृतिक पृष्ठभूमि, महिलाक एकाधिकार आ विशिष्ट क्षेत्रीय पहचान अछि। मिथिला कतय अछि ? एहि भूमिक सांस्कृतिक अ ऐतिहासिक महत्व की अछि ? इ कला मिथिला मे विशेष रूपें किएक अछि ? एहि कला रूपक विषय मे किछु लिखबा सँ पहिने एहि प्रश्‍न समक उत्तर अपेक्षित अछि । 

भारतक पैघ शहर आ आधुनिक दुनिया सँ दूर एक सुंदर क्षेत्र अछि जे कहियो मिथिलाक रूप मे जानल जाईत छल । ई पूर्वी भारत मे स्थापित पहिल राज्य छल । ई क्षेत्र उत्तर मे नेपाल, दक्षिण मे गंगा, पश्‍चिम मे गंडक आ पूब मे बंगाल धरि पसरल मैदानी भाग अछि। वर्तमान बिहारक चंपारण, सहरसा मुजफ़्फ़रपुर, वैशाली, दरभंगा, मधुबनी, सीतामढ़ी, सुपौल, समस्तीपुर, मुँगेर, बेगूसराय, भागलपुर आ पूर्णियाँ जिलाक भाग मिथिला अछि। ई पूर्णत: समतल अछि। एकर माटि दोमट अछि जे गंगा नदी द्वारा आनल गेल अछि। यदि मानसून मे विलंब भेल या कम वर्षा भेल तँ फ़सल मे रूकावट अबैत अछि। लेकिन यदि पानिक देवताक कृपा भेल तँ पूरा मैदन हरियरे हरियर रहैत अछि। मधुबनी पेंटिंगक हृदय स्थली अछि । एहि क्षेत्रक सघन हरियाली प्राचीन दर्शक लोकनि कें ततेक आकर्षित कयलक जे ओ एहि क्षेत्र के मधुबनी (मधुक जंगल ) कहलनि। आब इ जिला पेंटिंगक लेल सब सँ बेसी जानल जाइत अछि। एहि पौराणिक क्षेत्र मे राम (अयोध्याक राजकुमार आ विष्णुक अवतार) सीता सँ वियाह केलनि। सीताक जन्म हुनक पिता जनक द्वारा हर (हल) जोतबाक समय भेल । मिथिला ओ पवित्र भूमि अछि जतय बौद्ध धर्म आ जैन धर्मक संस्थापक आ संस्कृत शिक्षाक छह परंपरागत शाखाक विद्वान जेना कि याज्ञवल्क्य, वृद्ध वाचस्पति, अयाची मिश्र, शंकर मिश्र, गौतम, कपिल, सचल मिश्र, कुारिल भट्ट आ मंडन मिश्रक जन्म भेलनि । १४ वीं सदीक वैष्णव कवि विद्यापतिक जन्म मिथिला मे भेल जे अपन पदावलीक माध्यम सँ एहि क्षेत्र मे राधा आ कृष्णक बीचक संबंधक व्याख्या करैत प्रेम गीतक नव रूप के अमर बना देलनि । इएह कारण अछि जे लोक हुनका जयदेवक पुनर्जन्म रूप मे (अभिनव जयदेव ) स्मरण रखलक । कर्णप्योर (बंगालक एकटा शास्त्रीय संस्कृत कवि) अपन प्रसिद्ध भक्‍तिमय महाकाव्य "पारिजात हरण" मे मिथिलाक लोकक विद्वताक चित्रण केलनि। कृष्ण अमरावती सँ द्वारका जेबाक मार्ग मे एहि भूमिक ऊपर सँ उड़ैत काल सत्यभामा सँ कहलनि, "कमलनयनी ! देखू ई मिथिला थिक, जतय सीताक जन्म भेल। एतय विद्वान लोकनिक जीह पर सरस्वती सगर्व नचैत छथि (मिश्र, कैलाश कुमार २०००) " । मिथिला एकटा अद्‍भुत क्षेत्र अछि जतए कला आ विद्वता, लौकिक आ वैदिक व्यवहार दुनू पूर्ण सौहार्द्र सहित संग संग चलैत अछि ।

पृष्ठभूमि
भारतक विविधता जेकाँ एकर लोक कला एहि देशक बहुविध संस्कृति के विभिन्न रंग द्वारा प्रदर्शित करैत अछि। ई कला (पेंटिंग) लोक कलाक समुद्रक रूप मे मानल जाइत अछि, जाहि मे प्राचीने समय सँ लोकप्रिय कला रचना भारतीय उपमहाद्वीपक हर भाग सँ अबैत रहल । भारतक कला मध्य मिथिला पेंटिंगक अपन महत्वपूर्ण स्थान अछि । मिथिला मे महिला देबार, सतह, चलायमान वस्तु आ कैन्वस पर पेंटिंग करैत छथि, माटि सँ देवता, देवी] जानवर आ पौराणिक पात्रक प्रतिमा बनबैत छथि; सिक्‍की घास सँ टोकरी, छोट- छोट वरतन और खिलौना बनबैत छथि, केथरी आ सुजनी बनेबाक रूप मे कशीदाक काज करैत छथि, वभिन्न तरहक धार्मिक आ काजक चीज बनबैत छथि । ई कलाक काज महिला द्वारा दैनिक काजक रूप मे कएल जाइत अछि, जे हुनका पूर्ण रचनात्मक व्यक्ति, एकटा गायक, मूर्तिकार, चित्रकार, कशीदाकार आ सभ किछु बनबैत अछि । पीढ़ी दर पीढ़ी मिथिलाक महिला विभिन्न विशिष्ट पेंटिंग बनेलनि अछि । 

चर्चा 
मिथिला मे सामान्यतया पेंटिंग महिला द्वारा तीन रूप मे कएल जाइत अछि : सतह पर पेंटिंग, देबार पर पेंटिंग आ चलायमान वस्तु पर पेंटिंग। प्रथम श्रेणी मे अरिपन अबैत अछि जे सतह पर अरबा चाऊर (कच्चा चावल) क लई सँ बनायल जाईत अछि। सतहक अलावा एकरा केरा आ मैना पात आ पीढ़ी पर सेहो बनाओल जाइत अछि। एकरा दहिना हाथक आँगुरक प्रयोग सँ बनाओल जाइत अछि। तुसारी पूजा (कुमारि लडकी द्वारा नीक पतिक कामना सँ शिव और गौरी के प्रसन्न करबाक लेल त्योहार) क अरियन उज्जर, पीयर आ लाल रंगक चाऊरक चूर्ण सँ बनाओल जाइत अछि । विभिन्न अवसरक लेल विभिन्न तरह क अरिपन होईत अछि । अष्टदल, सर्वतोभद्र दशयत आ स्वास्तिक एकर मुख्य प्रकार अछि । देबार परहक पेंटिग अनेको रंगक होईत अछि । एहि मे मुख्यत: तीन सँ चारि रंगक प्रयोग होईत अछि। एहि मे नयना जोगिन, पुरैन, माँछक भार, दही, कटहर, आम, अनार आदिक गाछ आ चिड़ै जेना सुग्गाक चित्र बनाओल जाइछ । चलायमान वस्तु पर पेंटिंग मे शामिल अछि माटिक बरतन, हाथी, सामा-चकेबा, राजा सलहेस, बाँसक आकृति, चटाई, पंखा आ सिक्‍की सँ बनल वस्तु। एहि मे सँ कतेक पेंटिंग तांत्रिक महत्वक अछि। विवाह समारोहक दौरान किछु अवैदिक प्रथाक सेहो पालन सिर्फ़ महिला द्वारा कएल जाइत अछि जेना ठक- बक, नयना- जोगिन आदि, जे मिथिला तंत्र सँ संबंधित अछि । 

देवार परहक पेंटिंग आ सतह परहक पेंटिंग जे घर के सुन्दर बनेबाक लेल आ धार्मिक उद्देश्‍य सँ कएल जाईत अछि, महाकाव्य युग सँ चलि रहल अछि । तुलसीदास अपन महान काव्य रामचरितमानस मे सीता आ रामक वियाहक अवसर पर कएल गेल मिथिला पेंटिंंगक वर्णन केलनि अछि । राम आ सीतक सुंदर जोड़ी सँ प्रभावित भऽ कऽ गौरी वियाहक समारोह मे भाग लेलनि आ कोहबरक चित्रण करय चाहलनि जतय सुमंगलीक कें एहि आदर्श जोड़ीक लेल गीत आ संबंधित विध व्यवहार करक छलनि । एहि चित्रण मे परंपरागत चित्र, हिन्दू देवी- देवताक चित्र आ स्थानीय जीव-जन्तु आ वनस्पतिक चित्र बनाओल जाइत अछि । महिला कलाकार एहि कलाक एकमात्र अभिरक्षक छथि, जे ई चित्रण करैत छथि आ पीढ़ी दर पीढ़ी ई माय सँ बेटी के हस्तांतरित भऽ जाइत अछि । ओ एहि कला रूप कें प्राचीन समय सँ बचा कें रखने छथि । लड़की ब्रश आ रंग सँ नेने सँ काज करब शुरू करैत छथि जेकर पराकाष्ठा कोहवर में देखल जा सकैछ । वियाह सँ संबंधित सभ धार्मिक समारोह कोहबर मे होइत अछि। अहिवातक पातिल के चारि दिन लगातार जरा कऽ राखल जाइत अछि। मिथिला पेंटिंग (मधुबनी पेंटिंग) क वर्तमान रूप देबार पेंटिंग, सतह पेंटिंग केर कागज आ कैंपस पर रूपांतरण थिक । ई प्रयोग बहुत पुरान नहि अछि । २०वीं सदीक साठिक दशक मे भयंकर अकालक चुनौती कें सामना करक लेल महिलाक लेल काजक अवसर निमित्त किछु महिला लोकनि देबार आ सतह परहक अपन कला कें कागज या कैनवस पर उतारब शुरू केलनि। प्रारंभ मे एकरा देखवला कम लोक छल परन्तु बाद मे एहि मे वृद्धि भेल । एहि काज मे महिला लोकनि कें खूब सफ़लता भेटल आ व्यवसायक एकटा नव मार्ग खूजल। ताहि समय सँ पेंटिंग मे विविधता आएल अछि। देबार पेंटिंग के हाथ सँ बनल कागज पर हस्तांतरित कएल गेल आ धीरे- धीरे ई आन स्थान यथा ग्रीटिंग कार्ड, ड्रेस, सनमाइका आदि पर सेहो उतरल। नीक चित्रांकन, चमकदार स्वदेशी रंग, सभ संभव स्वदेशी प्रयोग आदि सँ पूरा दुनियाक दर्शक आकर्षित भेलाह। प्रारंभ मे किछु ब्राह्मण महिला कें एहि कला कर्मक अवसर देल गेल परन्तु १० वर्षक बाद किछु कार्यस्थ महिला एक नव रीतिक संग एहि क्षेत्र मे एलीह । एखन धरि हरिजन महिला एहि क्षेत्र मे नहि आयल छलीह । सीता देवी मिथिला पेंटिंगक ब्राहमण स्टाइल कें आगाँ बढ़ेलीह । एहि मे मुख्यत: कोहबर और देवी देवताक चित्र छल । बौआ देवी आ हुनक बेटी सरिता सेहो एहि क्षेत्र मे अपन पर्याप्त योगदान देलनि । 
कायस्थ महिला एहि क्षेत्र मे सेहो आगाँ अएलीह आ सतरिक दशक मे हुनक पहचान बनल । ओ लोकनि गाम आ धार्मिक दृश्‍य के पेंटिंग मे स्थान देलनि। गंगा देवी, पुष्पा कुमारी, कर्पूरी देवी, महासुन्दरी देवी आ गोदावरी दत्त प्रमुख कायस्थ महिला कलाकार छलीह । एहि दुनू वर्गक महिला कलाकार लोकनिक प्रयास सँ मिथिला कला कें मूर्त रूप भेटल ।

तेसर समूह हरिजन महिला १९८० क दशक मे आगाँ अयलीह। दुसाध आ चमार जातिक महिला लोकनि परंपरागत पेंटिंग क प्रयोग अपन धार्मिक काज आ घर-वार सजेबाक लेल करैत छलीह। ओ लोकनि गोदना आ अन्य चमकदार रंगक प्रयोग अपन पेंटिंग मे करय लगलीह। बाद मे एहि मे लाईन, तरंग, वृत आदि सेहो जुड़ि गेल। जमुना देवी आ ललिता देवी प्रसिद्ध हरिजन कलाकार भेलीह । ओ लोकनि पेंटिंग मे दैनिक जीवनक वस्तु जातक सेहो चित्रण करय यगलीह । आब तँ सभ जातिक लोक एहि कलाक उपयोग जीविका अर्जन निमित्त करैत छथि ।

सभ कलाकर लोकनि रंगक लेल मुखयतया प्रकृति पर निर्भर करैत छथि । ओ लोकनि माटि, छाल, फ़ूल , जामुन सँ कतेको प्राकृतिक रंग निकालैत छथि । रंग मुख्यत: लाल, नीला, हरिहर, कारी, हल्कापीयर, गुलाबी आदि होईत अछि । प्रारंभ मे घर मे बनाओल गेल रंग सँ काज चलैत रहल तथापि एहि विद्य सँ प्राप्त रंगक मात्रा कम होईत छल आ तें महिला लोकनि बाजार मे उपलब्ध रंगक प्रयोग करब सेहो शुरू केलनि । 

कोहबरक चित्रांकन पौराणिक , लोकगाथा आ तांत्रिक प्रतीक पर आधारित अछि। कोहबरक चित्रण नव जोड़ाक कें आशीषक निमित्त कएल जाईछ। एहि पेंटिंग मे सीताक वियाह या राधा कृष्णक चित्रांकन अछि। शक्‍ति भूमि हेबाक कारणें मिथिला पेंटिंग मे शिव, शक्‍ति, काली, दुर्गा, हनुमान , रावण आदिक चित्रण सेहो भेटैत अछि। उर्वरता आ संपन्नता प्रतीक यथा माछ, सुग्गा, हाथी, काछु, सूरज, चन्द्रमा, बाँस, कमल आदिक चित्रांकन प्रमुखता सँ होइत अछि। एहि पेंटिंग मे देवताक स्थान बीच मे आ हुनक प्रतीक, वनस्पति आदिक स्थान पृष्ठभूमि मे रहैत अछि । 

वाणिज्यीकरण सँ एहि कला कें नोकसान पहुँचल अछि । महिला आ पुरूष एहि कला के शहर आ नगरक बाजार सँ सीखि रहल छथि । प्रशिक्षण देनिहार स्वयं एहि कलाक तत्व आ सौंदर्य सँ अनभिज्ञ छथि। किछु गोटा तँ रंगक संयोजीकरण, प्रकृति सँ एकर प्राप्ति, पृष्ठभूमिक निर्माण, लय, रंग, गीत, विधि, नृत्य सँ एकर संबंध आ पेंटिंगक ढ़ंग सँ सेहो अपरिचित छथि । पेंटिंगक विषय बा डिजाइन आब अधिकांश मामिला मे खरीददार द्वारा निर्णीत होइत अछि। खरीददार केन्द्रित पहल एहि महान कला रूपक रंग, डिजाइन, मूल, संवेदना आदि पर खतरा अछि। हम देखैत छी जे तांत्रिक पेंटिंगक नाम पर महिला मिथिलाक परंपरा सँ बहुत अलग किछु बनवैत छथि । वाणिज्यिकरण सँ बहुतो पुरूष कलाकार सेहो एहि मे रुचि लेब शुरू केलनि अछि । ओ एहि मे महिलाक महत्व कें बुझने बिना पेंटिंग करैत छथि। ओ मिथिला पेंटिंगक नाम पर खरीदनाहारक जरूरतिक मोताबिक किच्छो पेंटिंग करक लेल तैयार रहैत छथि । 

लेकिन जहन हम लोक आ परंपरागत पेंटिंगक रूप मे मिथिला पेंटिंगक गप करैत छी, जे धार्मिक अवसर पर बनाओल जाइछ या भारतक कोनो धार्मिक पेंटिंगक गप करैत छी तँ हम देखैत छी जे एहि मे कतेको कार्यकलाप जूड़ल अछि। ई संयोजन वस्तुत: कला कें विशेष महत्व दैत अछि। अवधारणा आ अनुभवक आधार पर देखला सँ सभ स्थानीय, क्षेत्रीय, अखिल भारतीय आ भारत सँ बाहर कलाक अभिव्यक्ति आंतरिक मन सँ उभरैत देखाइत अछि आ जीवनक एकटा अभिन्न अंग अछि। पेंटिंग, गीत, नृत्य, कविता आ आन कार्यात्मक चीज कें पौराणिक कथा, धार्मिक रीति, त्योहार आ संस्कार सँ अलग कऽ कऽ नहि देखल जा सकैत अछि । जहन एकटा पेंटर देबार या सतह कें पेंट करैत रहैत छथि तँ अन्य महिला लोकनि गीत गाबि कऽ हुनका मददि करैत छथिन। लोक कथा सँ लेल गेल ज्ञान सेहो हुनका पेंटिंगक लेल विषय प्रदान करैत अछि। तांत्रिक पेंटिंग वस्तुत: मधुश्रावणीक कथा पर आधारित अछि । आ एहिना पेंटिंग आ आन कलाक संबंध कतेको लोक कला सँ अछि । 

एकटा महिला जहन देबाल पर चित्रांकन करैत छथि तँ ओ कतहु सँ आर्थिक लाभक आशा नहि करैत छथि । तथापि जहन ओ अपन पेंटिंग के बेचबाक लेल बनबैत छथि तँ हुनक पूरा ध्यान संस्कृति सँ ग्राहक दिस चलि जाईत अछि । तहन ओ परंपरा के जीवित रखबाक लेल पेंटिंग नहि करैत छथि, वरन जीविकाक लेल पेंटिंग करैत छथि । मिथिला सँ जीविकाक निमित्त सतत पलायन सेहो एहि पेंटिंग के बाहर अनलक अछि आ बाजार मे एकरा नव खरीददार भेटलैक अछि । 

किछु चित्रकार अर्थात कर्पूरी देवी, गंगा देवी आ जमुना देवी अपन खरिददारक जरूरतक अनुसार पहल केलनि अछि । गंगा देवी अपन पेंटिंग मे रामायण चित्र के उतार लनि अछि । गंगा देवी मधुबनी सँ अपन यात्रा शुरू केलनि । ओ इलाजक निमित्त दिल्ली एलीह। ओ अपन पेंटिंग मे रेलगाड़ी, डॉक्टर, अस्पताल, सीरिंज, मेडिकल वार्ड सभ किछुक चित्रांकन केलनि। हुनक पहल अनेको तरह सँ विशिष्ट छल । किछु लोक हुनक आलोचना केलनि जे एहि सँ मिथिलाक लोक चित्रांकन के हानि होएत, तठापि बहुतो लोक हुनक समर्थन केलनि ।

जमुना देवी आ हुनक भाई मितर राम चमकीला रंगक स्टाइलक विकास केलनि, जेकर बराबरी मिथिला कला मे नहि अछि । ओ स्वयंभू कलाकार छथि आ जानवर जेना कि गाय आदिक चित्रण सँ आनंदित होईत छथि। हुनक चित्रण परिपाटी सँ स्वतंत्र अछि। तथापि ओ रंगक प्राप्ति, कैनवासक पृष्ठभूमिक निर्माण, सजीव चित्रांकन आदि मे परंपराक पालनक प्रति दृढ़ छथि ।

इ चित्रकार लोकनि भूकंप, नदी आ आन कोनो वस्तुक चित्रांकन करैत छथि, जे ग्राहक हुनका सँ चाहैत छथि । जितवारपुर आ राँटी गाम मे मिथिला पेंटिंग वाणिज्यिक कार्यकलापक रूप मे उभरल अछि। जहन हम हाले मे जितवारपुर गेलहुँ तँ देखलहुँ जे जमुना देवी १५ सँ बेसी छात्र के, जे हरिजन सँ लऽ कऽ ब्राह्मण परिवार सँ छल, पढ़बैत छलीह। पुछला पर ओ उत्तर देलनि, "हम एकरा सभ के माय जेना पढ़बैत छियैक। ई सभ एहिठाम अपन घर जेकाँ अनुभव करैत अछि । हम एकरा सभ सँ कोनो फीस नहि लैत छियैक । अगर हम फीस लेबैक तँ हमर कला गंदा भऽ जायत। सब सँ उत्तम पुरस्कार हमरा लेल इ अछि जे जहन कोनो ब्राह्मण लड़की अपन प्रशिक्षण पूरा केलाक बान हमर पयर छुबैत अछि तँ हम ओकरा हृदय सँ आशीष दैत छियै आ एकटा प्रमाणपत्र सेहो दैत छियैक।"

मिथिला पेंटिंग कला सँ उपर अछि। एहि रचनात्मक क्षमता सँ महिलाक एक समूह अपन इच्छा, सपना, आकांक्षा, आशा आदि कें व्यक्त करैत छथि। यदि अहाँ हुनका सँ पुछबनि जे की कऽ रहल छी तँ उत्तर भेटत "गहबर या कोहबर लीखि रहल छी"। हुनका लोकनिक लेल हुनक स्टाइल एक तरहक लिपि थिक, जेकरा माध्यम सँ ओ पुरुष समुदाय या दुनियाक बाँकी लोक सँ संवाद करैत छथि। ओ कलात्मक लेखक छथि जे अपन भावना के पेंटिंगक माध्यम सँ लिखैत छथि। वस्तुत: ओ सृजनकर्ता आ ईश्वरक समीप छथि। आर्थिक युगक कारणें यद्यपि किछु पुरुष-पात सेहो एहि क्षेत्र मे उतरलह अछि, परंतु मूलत: आईयो ई महिलाक रचना थिक ।

निष्कर्ष
यदि भरत नाट्यम, मनिपुरी, कुचीपुड़ी, ओडिसी आ सतरिया नृत्य के मूल रूप मे रखैत दिनानुदिन लोकप्रिय कएय जा स्कैत अछि, तँ एहि महान लोक चित्रकला के मूल रूप मे किएक ने राखय जा सकैत अछि? कला वस्तु के बेचनाई खराब नहि थिक, तथापि खरीददारक समक्ष कलाक संपूर्ण परंपरागत रचनात्मकता आ मूल्यक समर्पण ठीक नहि थिक। मिथिला पेंटिंगक मूल रूप मे बचा दऽ रखबाक लेल गभीर चिन्तनक आवश्यकता अछि। अन्वेषणकर्ता, गैर सरकारी संगठन पेशेवर, लोक कलाकार आ संबंधित व्यक्ति के एहि कलाक मौलिकता बचेबाक लेल एकजुट भऽ जेबाक चाही।

प्रदर्शित आलेखक सर्वाधिकार रचनाकार आ संग्रहकर्त्ताक लगमे छन्हि।
कलर्स आफ मिथिला

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